History

The history of Madhepura can be traced back to the reign of Kushan Dynasty of Ancient India. The "Bhant" communities living in villages of Basantpur and Raibhir under Shankarpur block are the descendants of the Kushan Dynasty. Madhepura was then part of Maurya Dynasty, a fact asserted by the Mauryan pillar at Uda-kishunganj.
The name Madhepura is believed to have evolved from Gangapur - a village named after Gangadeo, the grandson of King Mithi, who is said to havea established the state of Mithila. Gangapur village itself is said to be named after King Gangsen of the Sen Dynasty. From 1704 AD to 1892, the Kosi river with its diverse courses remained striding the areas right from Forbisganj to Chandeli Karamchand and Raghuvansha Nagar & thereafter submerging itself into the Ganges at Kursela. As Madhepura stands at the centre of Kosi ravine, it was called Madhyapura- a place centrally situated which was subsequently transformed as Madhipura into present Madhepura. Another view is also there as to its naming as the area is said to have been inhabited by the bulk of Madhavas - clan of Lord Krishna. It was termed as Madhavpur which gradually became Madhavpur into Madhepura. (Extracted from Brihad Hindi Kosh, 5th Edition, Page- 887). In ancient times, Madhepura remained a part of Anga Desh. It was also governed by MauryaShungaKanva and Kushan dynasties. It was a part of Mithila province during Gupta Dynasty. The Mauryan Pillar discovered at Kishunganj bears testimony to it. Madhepura remained under the dominance of Bihar rulers during Rajput rule. Present Raibhir village under Singheshwar block was a stronghold of Bhars.
During Mughal period Madhepura remained under Sarkar Tirhut. A mosque of the time of Akbar is still present in Sarsandi village under Uda-Kishunganj. Sikander Sah had also visited the district, which is evident from the coins discovered from Sahugarh village


Religious connections


The place has remained the meditation ground of Lord Shiva and other Gods. Sri Hari Shankar Shrivastav 'Salav', a distinguished historian, finds the area of Madhepura part ofSingheshwar as the place of adoration and experiment of Vivandak and his son Rishya Shringa. The name of village Satokhar standing on the western embankment of one of the tributaries of Kosi west of Singheshwar at a distance of 5 km has been derived from Sanskrit word Sapta Pokhar - Seven Ponds, said to have been created 'Yajna Shala' by Rishi Shring for Putreshthi Yajna (Sacrificial ceremony for a son's birth). Rishi Shring at the request of his wife Shanta, the adopted daughter of Rompad, agreed and performed the Yajna to precipitate God to bless King Dashratha with sons. Consequently, the wives of Dashratha were impregnated after taking medicated Khir prepared by Rishi Shring and their sons RamLakshmanaBharat & Shatrughan were born one after the other. The Bharat Puran also refers to Singheshwar as Sringeshwar. The area has been identified as Rishi Shring Ashram during Ramayana period, its vicinity being surrounded by jungle inhabited by deer, leopards, bears, etc. King Yudhishthir is said to have visited the place along with Rishi Lomus during Mahabharat period.
Sheet and Basant both rulers of Kushan dynasty inhabited in this area. The fort of Sheet was located at present Kadamma whereas the fort of Basant was located at present Basantpur, a village under Singheshwar block. Ruins and remains of those forts are still visible. Sri Nagar, a village under Ghailarh block recently carved out of Madhepura block situated at a distance of 22 kilometres west of Madhepura town also present the remains of the two forts of King Sri Deva. [1]


मधेपुरा जिला

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मधेपुरा
—  जिला  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देशFlag of India.svg भारत
राज्यबिहार
ज़िलामधेपुरा
जनसंख्या
• घनत्व
45,015 (2001 तक )
क्षेत्रफल1,787 कि.मी² (690 वर्ग मील)
आधिकारिक जालस्थलmadhepura.bih.nic.in
मधेपुरा भारत के बिहार राज्य का जिला है। इसका मुख्यालय मधेपुरा शहर है। सहरसा जिले के एक अनुमंडल के रूप में रहने के उपरांत ९ मई १९८१ को उदाकिशुनगंज अनुमंडल को मिलाकर इसे जिला का दर्जा दे दिया गया। यह जिला उत्तर में अररिया और सुपौल, दक्षिण में खगड़िया और भागलपुर जिला, पूर्व में पूर्णिया तथा पश्चिम में सहरसा जिले से घिरा हुआ है। वर्तमान में इसके दो अनुमंडल तथा ११ प्रखंड हैं। मधेपुरा धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। चंडी स्थान, सिंघेश्‍वर स्थान, श्रीनगर, रामनगर, बसन्तपुर, बिराटपुर और बाबा करु खिरहर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं।

भौगोलिक स्थिति[संपादित करें]

कोशी नदी के मैदानों में स्थित इस जिले की स्थिति 25°. 34 - 26°.07’ उत्तरी अक्षांश तथा 86° .19’ से 87°.07’ पूर्वी देशान्तर के बीच है। इसके उत्तर मेंअररिया जिला तथा सुपौल जिला है तथा इसका उत्तरी छोर नेपाल से सिर्फ ६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। पूर्व की दिशा में पूर्णियां जिला, पश्चिम में सहरसा तथा दक्षिण में खगड़िया तथा भागलपुर हैं।

इतिहास[संपादित करें]

कहा जाता है कि पौराणिक काल में कोशी नदी के तट पर ऋषया श्रृंग का आश्रम था। ऋषया श्रृंग भगवान शिव के भक्त थे और वह आश्रम में भगवान शिव की प्रतिदिन उपासना किया करता था। श्रृंग ऋषि के आश्रम स्थल को श्रृंगेश्‍वर के नाम से जाना जाता था। कुछ समय बाद इस उस जगह का नाम बदलकर सिंघेश्‍वर हो गया। महाजनपद काल में मधेपुरा अंग एवं मौर्य वंश का हिस्सा था। इसका प्रमाण उदा-किशनगंज स्थित मौर्य स्तम्भ से मिलता है। बाद के वर्षों में मधेपुरा का इतिहास कुषाण वंश के शासनकाल से सम्बन्धित है। शंकरपुर प्रखंड के बसंतपुर तथा रायभीर गांवों में रहने वाले भांट समुदाय के लोग कुशान वंश के परवर्ती हैं। मुगल शासक अकबर के समय की मस्जिद वर्तमान समय में सारसंदी गांव में स्थित है, जो कि इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, सिंकंदर शाह भी इस जिले में घूमने के लिए आए थे।

प्रसिद्ध स्थल[संपादित करें]

सिंहेश्वर स्थान
यहाँ स्थित प्राचीन शिव मंदिर इस जिले का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषया श्रृंग के आश्रम में एक प्राकृतिक शिवलिंग उत्पन्न हुई थी। उस स्थान पर बाद में एक खूबसूरत मंदिर बना। एक व्यापारी जिसका नाम हरि चरण चौधरी था, ने वर्तमान मंदिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व करवाया था। यह शिवलिंग एक विशाल चट्टान पर स्थित है, जो कि करीबन 15-16 फीट ऊंचा है। प्रतिवर्षमहाशिवरात्रि के दिन भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।
श्रीनगर
मधेपुरा शहर से लगभग २२ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में स्थित श्रीनगर एक गांव है। इस गांव में दो किले हैं। माना जाता है कि इनसे से एक किले का इस्तेमाल राजा श्री देव रहने के लिए किया करते थे। किले के पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर दो विशाल कुंड स्थित है। जिसमें पहले कुंड को हरसैइर और दूसर कुंड को घोपा पोखर् के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त यहां एक मंदिर भी है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में स्थित पत्थरों से बने स्तंभ इसकी खूबसूरती को और अधिक बढ़ाते हैं।
रामनगर
मुरलीगंज रेलवे स्टेशन से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर रामनगर गांव है। यह गांव विशेष रूप से यहां स्थित देवी काली के मंदिर के लिए जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष काली-पूजा के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
बसन्तपुर
मधेपुरा के दक्षिण से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर बसंतपुर गांव स्थित है। यहां पर एक किला है जो कि पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है। माना जाता है कि यह किला राजा विराट के रहने का स्थान था। राजा विराट के साले कीचक, द्रौपदी से यह किला छिन लेना चाहते थे। इसी कारण भीम ने इसी गांव में उसको मारा था।
बिराटपुर
सोनबरसा रेलवे स्टेशन से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर बिराटपुर गांव है। यह गांव देवी चंडिका के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर का सम्बन्ध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि इस मंदिर का प्रमुख द्वार विराट के महल की ओर है। 11वीं शताब्दी में राजा कुमुन्दानंद के सुझाव से इस मंदिर के बाहर पत्थर के स्तम्भ बनवाए गए थे। इन स्तम्भों पर अभिलेख देखे जा सकते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। इसके साथ ही यहां पर दो स्तूप भी है। लगभग 300 वर्ष प्राचीन इस मंदिर में काफी संख्या में भक्तों की भीड़ रहती है। मंदिर के पश्चिम से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा पर्वत है। लोगों का मानना है कि कुंती और उनके पांचों पुत्र पांडव इस जगह पर रहे थे।
बाबा करु खिरहर
बाबा करु खिरहर मंदिर महर्षि खण्ड के महपुरा गांव में स्थित है। बाबा करु खिरहर मंदिर का नाम एक प्रसिद्ध संत के नाम पर रखा गया था। आसामबंगालउत्तर प्रदेश एवं बिहार के आस-पास के जिलों से काफी संख्या में लोग यहां आते हैं।